आज हम गुरु-वर्ग के सम्मान में कमी तथा उसके कारण सामाजिक जीवन पर पड़ रहे दुष्प्रभाव से चिन्तित हैं-यह तो उचित ही है, पर सहयोगी स्वावलम्बन पर आधारित कोई उपचार नहीं कर पा रहे हैं। अध्यापक-अध्येता-वर्ग-योजना को अपने शिक्षा संस्थानों में लागू करके प्राचार्य-गण निराशाजनक स्थिति को समाप्त कर सकते हैं।
अध्यापक एवं छात्रों में व्यक्तिगत सम्पर्क अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। अध्यापक- अध्येता-वर्ग-योजना के अन्तर्गत प्रत्येक अध्यापक लगभग 25 छात्रों के वर्ग से परामर्शदाता के रूप में सम्बद्ध रहता है। प्रत्येक वर्ग का सप्ताह/पक्ष में एक बार ‘मिलन’ होता है। इसके अलावा भी छात्र अपने वर्ग-परामर्शदाता प्राध्यापक से समय-समय पर सम्पर्क स्थापित करके अपनी समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करता है।
प्रत्येक छात्र से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने वर्ग-परामर्शदाता को अपनी प्रगति, वित्तीय एवं भावनात्मक समस्याओं आदि से परिचित रखे। वह चरित्र प्रमाण-पत्र, रेल या शुल्क रियायत, छात्र सहायता कोष से अनुदान, पाठ्य-पुस्तकों की प्राप्ति आदि के सम्बन्ध में अपने आवेदन पत्रों को अपने वर्ग-परामर्शदाता द्वारा संस्तुत कराये।
प्रवेश लेने वाला प्रत्येक छात्र प्रवेश पत्र के साथ ही अध्यापक-अध्येता-प्रपत्र भी भरे।…
आपके शिक्षा संस्थान में या तो अध्यापक-अध्येता-वर्ग-योजना लागू है या आप उसे लागू करना चाहेंगे। दोनों ही स्थितियों में कृपया हमें सूचित करें, जिससे अनुभवों के आदान-प्रदान द्वारा अध्यापक-अध्येता-वर्ग-योजना की सफल क्रियान्विति को बल मिले, गुरुवर्ग पुनः समाज में अपना उचित स्थान प्राप्त कर सके और राष्ट्र के संतुलित व्यक्तित्व से सम्पन्न समर्थ कर्णधारो का निर्माण निरन्तर होता रहे।