गोष्ठी (गीतायन-यज्ञ)

जीवन के अनिवार्य तत्त्व संतुलन के चार बुनियादी साधनों (सत्संग-यज्ञ, कोष, श्रम और सहिष्णुता) में गोष्ठी प्रथम है।

प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम अपने निवास-स्थान पर साप्ताहिक सत्संग-यज्ञ का संयोजन अवश्य करना चाहिए, जिसमें उपस्थित व्यक्ति आत्माभिव्यक्ति करे और अंत में ‘ॐ हम बनें सहिष्णु, रहें संतुलित’ – प्रार्थना (या विचार सूत्र) का वाचन हो।

सप्ताह के शेष दिनों में प्रत्येक व्यक्ति को सुविधानुसार अपनी गोष्ठी में आने वाले मित्रों के निवास-स्थानों पर संयोजित गोष्ठियों में जाना चाहिए।

गोष्ठी में आसन, वार्तालाप और जल की व्यवस्था वांछनीय है। उसमें वे सब चीज़ें अवांछनीय हैं, जिनसे किसी भी उपस्थित व्यक्ति को सत्संग-लाभ से वंचित रहना पड़े।

गोष्ठी से होने वाले लाभ पर गोष्ठी की सफलता निर्भर है, आने वाले व्यक्तियों की संख्या आदि पर नहीं। गोष्ठी में आमंत्रित महानुभाव रुचिकर या लाभदायक न लगने के कारण यदि गोष्ठी में न आ पायें तो उसका यह अर्थ नहीं है कि गोष्ठी में कमी है।

गोष्ठी के संयोजक हमें अपनी गोष्ठी का विवरण भेजने की कृपा करे।