विचार सूत्र

वर्तमान स्थिति क्या हमें सह्य है? यदि है, तो हम परम सहिष्णु हैं। सहिष्णुता दो प्रकार की होती है-1) संतुलित और 2) असंतुलित। जो असन्तुलित-सहिष्णु हैं, वे मनुष्य नहीं हैं-उनकी बात हम छोड़ दें। जो संतुलित-सहिष्णु हैं, वे आदर्श हैं। उनके सम्बन्घ में भी कुछ सोचने की आवश्यकता नहीं है। असहिष्णुता भी दो प्रकार की होती है-1) सन्तुलित और 2) असन्तुलित। संतुलित-असहिष्णु असहिष्णुता के कारण को दूर करने में लगे हुए हैं, अतः उनके लिए भी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं हैं। चिन्तनीय हैं-असंतुलित-असहिष्णु।

सन्तुलन जीवन का अनिवार्य तत्व है। गोष्ठी (यज्ञ), कोष (दान), श्रम (तप) और सहिष्णुता, सन्तुलन के बुनियादी साधन हैं। इनमें गोष्ठी का स्थान प्रथम है। एतदनुसार प्रत्येक व्यक्ति को सप्ताह में एक दिन अपने निवास स्थान पर गोष्ठी के लिए सुलभ रहना चाहिए और उसके द्वारा सहज रूप से सम्पर्क में आने वाले महानुभावों को सप्ताह में एक दिन अपने निवास स्थान पर गोष्ठी के लिए सुलभ रहने की प्रेरणा मिलनी चाहिए। सप्ताह में एक दिन अपने निवास स्थान पर गोष्ठी के लिए सुलभ रहने वाले मित्रों को वैसे अन्य मित्रों की गोष्ठियों आदि की सूचना उन मित्रों या गीतायन (अधिकृत सूचना केन्द्र का वैकल्पिक अमिधान, जिसका औचित्य सृष्टि-गीता या विश्व-गीत की गति (अयन) से समंजस (सन्तुलित) जीवन का प्रचारक होने में है) से प्राप्य है। जिन मित्रों का सत्संग (गोष्ठी)-लाभ अभीप्सित है, उनके लिए अपनी गोष्ठी के नियन्त्रण गीतायन द्वारा या सीधे उन मित्रों को भेज दिये जाते हैं। उन मित्रों के निमन्त्रण भी गीतायन द्वारा या सीधे यथा समय निमंत्री मित्र को मिल जाते है। निमंत्रित मित्र सुविधानुसार निमंत्री मित्रों का सत्संग लाभ लेते हैं – विशेषतः अपनी गोष्ठी में आने वाले निमंत्रित मित्रों का। यह आशा रखी जाती है कि प्रत्येक मित्र कम से कम एक मित्र-गोष्ठी में अवश्य नियमित रूप से भाग लेगा। वह उस गोष्ठी का सदस्य होता है। किसी गोष्ठी की सदस्य संख्या 10 तक हो सकती है। गोष्ठियों का सहयोजन दशक-पद्धति से होता है। गोष्ठी में उपस्थित मित्र आत्माभिव्यक्ति करते हैं।

सन्तुलन का दूसरा बुनियादी साधन है-कोष। एतदनुसार प्रत्येक मित्र को अपनी मासिक आय का कम से कम शतांश प्रतिशत (1/100 प्रतिशत) और अधिक से अधिक दशमांश प्रतिशत (1/10 प्रतिशत) अगले माह की 7 तारीख तक नगद या प्रो-नोट के रूप में उस गोष्ठी के कोष में देना चाहिए, जिसका वह सदस्य है। कोष का विनियोग गोष्ठी-समिति (सन्तुलन समिति) दाता की सम्मति से करती है। विनियोग प्रायः ऋण के रूप में होता है। ऋण पर ब्याज नहीं लिया जाता।

सन्तुलन का तीसरा बुनियादी साधन है-श्रम। एतदनुसार प्रत्येक मित्र को अपनी आजीविका के लिये अपनी रूचि का समाज-सम्मत कार्य प्रामाणिकता- पूर्वक करना चाहिए।

सन्तुलन का अंतिम साधन है-सहिष्णुता