प्रचलित विवाह पद्धतियों के दोषों का निराकरण करने के पश्चात् संतुलन समिति द्वारा एक निर्दोष विवाह पद्धति विकसित की गई है, जिसे संतुलित विवाह पद्धति कहा जा सकता है, क्योंकि व्यक्ति और समाज की संतुलित प्रगति के लिए यह विवाह पद्धति अनिवार्य है। निम्नांकित बातें इस विवाह पद्धति की आधारभूत हैं:-
- विवाह व्यक्तिगत और प्रजनन सामाजिक कार्य है, अतः विवाह स्वेच्छानुसार किया जा सकता है, पर प्रजनन समाज के निर्देशानुसार और बच्चे के पालन-पोषण का उत्तरदायित्व भी उसी समाज पर होना चाहिए।
- विवाह बिना परावलम्बन तथा व्यय के होना चाहिए।
- अनिवार्य परिस्थिति में विवाह विच्छेद की सरल व्यवस्था होनी चाहिए।
- कृत्रिम शुक्राधान द्वारा सुजनन (यूजेनिक्स) और कामतृप्ति व प्रजनन का विच्छेद उचित है (द्रष्टव्य-आउट ऑफ दी नाइट -एच जे मूलर)
- जिन बातों को व्यक्ति पर छोड़ा जाना चाहिए उन बातों में हस्तक्षेप करने की अशिष्टता अविवेकी जन करते हैं, पर जिस प्रजनन का समाज से सीधा सम्बन्ध है, उसके सम्बन्ध में समाज के अधिकार और दायित्व की चिन्ता वे नहीं करते। विवाह के बाद भी प्रत्येक प्रजनन के लिए समाज से अनुमति ली जानी चाहिए। जनसंख्या वृद्धि तथा बच्चों के लिए, राष्ट्र और मानवता के संतुलित व्यक्तित्व के सम्पन्न समर्थ कर्णधार बनने का मार्ग प्रशस्त करने की समस्या का यही सर्वोत्तम हल है। इस हल को अपनाने में बाधक प्रचलित नियमों में वैध उपायों से परिवर्तन वांछनीय है।
- विवाहित युग्म के लिए अपना अलग नया परिवार बनाकर रहना अनिवार्य नहीं होना चाहिए। सामान्यतः विवाह पूर्व के परिवार में तथा कुछ समय विवाहित साथी के साथ अतिथिवत् रहने को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- गर्भ-रोधक साधनों से कामतृप्ति और प्रजनन का विच्छेद अब पूर्णतः संभव है। प्रकृति ने काम की योजना काम-तृप्ति के लिए नहीं, प्रजनन के लिए की है, अतः आशा है, शीघ्र ही कामतृप्ति की ओर हमारी प्रवृत्ति समाप्त हो जायेगी तथा मानव, जीवन की अधिकांश शक्ति को व्यर्थ जाने से बचाकर उसका सदुपयोग करेगा।