गीतायन-पंचशील

गोष्ठी पंचशील –

  1. गोष्ठी में निर्णयाधिकार संयोजक का होता है, जिसके निवास स्थान पर नियमित गोष्ठी का संयोजन होता है।
  2. संयोजक एक अन्य नियमित गोष्ठी में भाग लेता है, जिसका वह सदस्य होता है।
  3. संयोजक अपने सम्पर्क में आने वाले प्रायः दस तक प्रबुद्ध व्यक्तियों को उनके अपने निवास स्थान पर नियमित गोष्ठी का संयोजन करने के लिए प्रेरित करता है।
  4. संयोजक अपनी गोष्ठी में नियमित रूप से भाग लेने वाले सदस्य-मित्रों की गोष्ठियों में प्रायः क्रमिक रूप से उपस्थित होता है।
  5. गोष्ठी का समापन गोष्ठी का महत्तम अंग है, जिसमें प्रायः गीतायन ‘‘पंचशील’’ विज्ञप्ति का वाचन तथा ‘‘मौन’’ का समावेश होता है। समापन के पूर्व संयोजक उपस्थित सदस्य मित्रों को आत्माभिव्यक्ति का अवसर देता है।

कोष पंचशील –

  1. सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य न्यूनतम अर्थाधारित होता है, यथा अपने निवास पर नियमित गोष्ठी का संयोजन।
  2. सामाजिक कोष में अपनी मासिक आय का कम से कम शतांश प्रतिशत (अधिकतम दशमांश प्रतिशत) दान करके प्रगतिशील गोष्ठी संयोजक सन्तुलन समिति की सदस्यता प्राप्त कर लेता है।
  3. कोष का सामाजिक विनियोग संतुलन समिति का संयोजक दाता सदस्य की सम्मति से करता है। दाता सदस्य कोष में प्रदत्त अपनी राशि के, संयोजक के ही निर्णयानुसार, विनियोग हेतु स्थायी सम्मति प्रदान कर सकता है।
  4. सन्तुलन-समिति का प्रगतिशील सदस्य सामाजिक कोष में प्रदत्त अपनी राशि सामाजिक विनियोग हेतु प्रायः ऋण रूप में प्राप्त कर सकता है, जिस पर ब्याज नहीं लिया जाता। नया ऋण प्राप्त करने के पूर्व, पूर्व प्राप्त ऋण लौटाया जा चुकता है।
  5. सन्तुलन-समिति का प्रगतिशील संयोजक ‘गीतायन’ को सर्वस्व समर्पण करके अंतरंग-समिति की सदस्यता प्राप्त कर लेता है। उसकी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व ‘गीतायन’ पर होता है।

श्रम पंचशील –

  1. सन्तुलन समिति के कोष की मूल राशि का विनियोग प्रायः ‘समिति’ के सदस्यों की श्रम (आजीविका) सम्बन्धी समस्याओं के हल हेतु ही होता है, अन्य प्रकार का सामाजिक विनियोग संयोजक के निर्णयानुसार प्रायः ब्याज की राशि तक सीमित रहता है।
  2. ‘गीतायन’-सम्मत आजीविका कार्य समाज सम्मत होता है।
  3. ‘गीतायन’-सम्मत आजीविका कार्य रुचिकर होता है।
  4. ‘गीतायन’-सम्मत आजीविका कार्य प्रमाणिकता से किया जाता है।
  5. आर्थिक रूप से स्वतंत्र ‘यज्ञ’ कर्ता मित्र संयोजक-समिति के तथा ‘दान’ कर्ता मित्र संतुलन समिति के सदस्य होते हैं।

सहिष्णुता पंचशील-

  1. जीवन में कोई बात इतनी महत्वपूर्ण नहीं है कि उसके लिए हम असहिष्णु हों ।
  2. सहिष्णुता से शक्ति का व्यर्थ संघर्ष में अपव्यय नहीं होकर, उस बात के लिये विनियोग संभव है जिसे हम महत्व देते हैं।
  3. सहिष्णुता के लक्ष्य-प्राप्ति में ‘सम्पर्क’ के मित्रों का सहयोग मिलने की संभावना बढ़ती है।
  4. अपने में सहिष्णुता के विकास के लिए अपने संयोजक मित्र को माध्यम बनाया जाता है।
  5. ‘गीतायन’-उपासना में प्राथमिक और अन्तिम चरण सहिष्णुता है।

अशब्द पंचशील – 卐

व्यक्तिगत, पारिवारिक-सामाजिक समस्याएं जब हमारे सामने आती है तो प्रायः हम असंतोष प्रकट करते हैं, पर वे समस्याएं हल नही होती हैं क्योंकि हम चाहते हैं कि कोई दूसरा ही उन समस्याओं को हल करे, हमें उस दिशा में कुछ नहीं करना पडे़ । आशा है, आप हमसे सहमत होगें कि इस प्रकार की गैर जिम्मेदारी समाप्त होनी चाहिए और उसका प्रारम्भ हमसे और आपसे होना चाहिए ।

हमने प्रारम्भ कर दिया है। हम एक घण्टा प्रतिदिन समस्याओं पर सुलभ मित्रों के साथ चर्चा करके आपसी सहयोग से उन्हें हल करते हैं। रविवार को सन्तुलन विद्या मन्दिर/ज्ञान-मन्दिर में ___ वार को प्रेरित के घर पर तथा ___वार को मातृमन्दिर पर ‘‘पारिवारिक सत्संग-गोष्ठी’ होती है। शेषवार पड़ौसी सम्पर्क तथा मौहल्ला सभाओं के लिए नियत हैं। इस क्षेत्र को मौहल्ला सभा ___वार, दिनांक ______ को __ बजे आयोजित है। वहाँ हम समस्याओं को आपसी सहयोग से हल करेगें । इस बीच कृपया संयोजक समिति (उक्त कार्य के लिए एक घण्टा प्रतिदिन देने वाले मित्र) को अपनी, अपने परिवार की तथा अपने मौहल्ले की समस्याओं को जानकारी देने का कष्ट स्वीकार करें तथा यह भी सूचित करे कि इस ‘यज्ञ’ में आप स्वयं क्या ‘आहुति’ दे सकते हैं।